Skip to main content
Centre for European Studies
Centre for European Studies
Centre for European Studies
Centre for European Studies

Hindi-ces

अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन के विद्यालय, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली, के अंतर्गत स्थित यूरोपियन अध्ययन केंद्र एक बहु-विषयक विभाग है, जिसका उद्देश्य शिक्षण, शोध, तथा अतिरिक्त गतिविधियों को, जो यूरोप तथा इंडो-यूरोपीय मामलों की समझ को सुधारती हैं, को बढ़ावा देना है।


यह अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन के विद्यालय के नए केन्द्रों में से एक है, जो 2005 में क्रियान्वित हुआ था। यह केंद्र, 2004 में विद्यालय के बड़े पुनगठन अभ्यास की पहल का परिणाम है। केंद्र तत्कालीन अमेरिका तथा पश्चिम यूरोपीय अध्ययन के पश्चिम यूरोपीय प्रभाग के साथ-साथ तत्कालीन रुसी केंद्र, मध्य एशिया तथा पूर्व यूरोपीय अध्ययन के पूर्व यूरोपीय प्रभाग के विलय के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आया था। तेज़ी से विकास, जैसे कि पूर्वी यूरोप में समाजवादी शासन व्यवस्था के पतन तथा यूरोपीय एकीकरण की चल रही प्रक्रिया, के संदर्भ में, यह स्पष्ट हो गया था कि यूरोप के कुछ हिस्सों का अलग से अध्ययन करने के लिए कोई भी उचित कारण नहीं रह गया था।


हांलांकि केंद्र नया है, यह बहुत ही अनुभवी संकाय की विशेषज्ञता पर बनाया गया है। अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन के विद्यालय में पश्चिम यूरोपीय अध्ययन कार्यक्रम, एशिया में सबसे पुराने केंद्रों में से एक था, जिसने समकालीन यूरोप पर उन्नत शिक्षण और शोध कार्यक्रम की पेशकश की थी। डॉ. गिरिजा के। मुखर्जी ने, यूरोपीय अध्ययन कार्यक्रम की स्थापना, 1964 में अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन के भारतीय विद्यालय (आईएसआईएस) में, अंतरराष्ट्रीय राजनीति तथा संगठन के विभाग के रूप में की थी। उन्होनें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी कार्यक्रम की स्थापना की थी जब 1971 में आईएसआईएस को इसके साथ विलय किया गया था तथा सीएडब्ल्यूईएस में, पश्चिम यूरोपीय अध्ययन ने एक स्वतंत्र कार्यक्रम की स्थिति हासिल की थी।


उसी प्रकार, पूर्वी यूरोपीय अध्ययन, विद्यालय में में चार से अधिक दशकों के लिए अस्तित्व में आया था। भू- राजनीतिक वास्तविकताओं के बदलाव के साथ, इस कार्यक्रम ने चार विभिन्न शब्दावली की सरंचना के तहत कार्य किया। पचास तथा साठ के दशक के दौरान, आईएसआईएस में, यह अंतर्राष्ट्रीय राजनीति तथा और राष्ट्रमंडल के अध्ययन कार्यक्रमका एक भाग था। साठ के दशक में, यह रुसी तथा पूर्वी यूरोपीय अध्ययन केंद्र का भाग बन गया था। 1975 में, इसने बड़े केंद्र जिसे सोवियत और पूर्वी यूरोपीय अध्ययन के लिए केन्द्र के नाम से जाना जाता था, के अंतर्गत कार्य करना आरंभ किया था। नवीन पुनर्गठन के लिए सोवियत विघटन से, इसने रुसी, मध्य एशिया तथा पूर्वी यूरोपीय अध्ययन के केन्द्रों के लिए कार्य किया। प्रभाग ने, समाजवादी व्यवस्था के तहत पूर्वी यूरोपीय देशों के अध्ययन से ले कर, लोकतांत्रिक समाज और बाजार अर्थव्यवस्था की ओर के क्षेत्र के कट्टरपंथी आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों को समझने तक में, अपनी भूमिका को बदलते देखा है।


इसके वर्तमान मिशन को पूरा करने के लिए, केंद्र दोनों यूरोप और यूरोपीय संघ पर, नए पाठ्यक्रमों के विकास प्रक्रिया में शामिल है। एम.फिल के स्तर पर, यूरोपीय आर्थिक एकीकरण, यूरोपीय सुरक्षा, यूरोपीय संघ में दुनिया की राजनीति, यूरोप और राजनीति में मुद्दों की पहचान, और मध्य और पूर्वी यूरोप में समाज इत्यादि में नए पाठ्यक्रमों को छात्र/छात्राओं के लिए पहले से ही प्रस्तुत किया जा चूका है। इसके अलावा, क्षेत्र अध्ययन कार्यक्रमों में भाषा की प्रवीणता की आवश्यकता को समझते हुए, केंद्र ने दो सत्रों में फैले जर्मन भाषा में एक अनिवार्य पाठ्यक्रम को प्रस्तुत किया है। आने वाले समय में, फ्रेंच में अन्य भाषा पाठ्यक्रम को शुरू करने की योजना बनायीं जा रही है। केंद्र द्वारा प्रस्तुत एक और अनिवार्य पाठ्क्रम शोध पद्धति पर है। केंद्र के संकाय के सदस्य भी विद्यालय के एम।ए कार्यक्रम को चलाने में अपनी भागीदारी प्रदान करते हैं, एम.ए के स्तर पर, यह यूरोपीय संघ, जर्मन विदेश नीति और चुनिंदा पूर्वी यूरोपीय देशों में राजनीतिक व्यवस्था पर पाठ्यक्रम प्रस्तुत करता है। आने वाले वर्षों में, केंद्र की नए एम.ए पाठ्यक्रमों की पेशकश करने की योजना है।
भारत में यूरोपीय अध्ययन के बढ़ते महत्त्व को देखते हुए, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने यूरोपीय अध्ययन के केंद्र को, क्षेत्र अध्ययन कार्यक्रम (वर्तमान में परियोजना मोड के तहत) के अंतर्गत विशेष सहायता देकर, यूरोप पर आगे के अध्ययन और शोध के रूप में मान्यता प्रदान की है।


अगले कुछ वर्षों में, केंद्र की विश्वविद्यालयों तथा शोध संस्थानों के साथ साझेदारी में परियोजनाओं को विकसित करने की योजना है तथा बुद्धिजीवी दुनिया भर से यूरोप पर कार्य कर रहे हैं। यूरोप और इंडो-यूरोपीय मुद्दों से संबंधित मामलों पर शैक्षणिक सम्मेलनों और कार्यशालाओं के आयोजन पहले से ही चल रहे हैं। केंद्र की दोनों, भारत और यूरोप से प्रतिष्ठित वक्ताओं को शामिल कर, यूरोप पर सार्वजनिक व्याख्यान को प्रायोजित करने की योजना भी है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, केंद्र यूरोप मंच की गतिविधियों, जो की 1998 में तत्कालीन पश्चिम यूरोपीय प्रभाग द्वारा यूरोप पर नियमित तथा सतत विचार-विमर्श तथा चर्चा के लिए मंच प्रदान करने हेतु, स्थापित की गयी थीं, के साथ जारी रहेगा। शिक्षा, राजनीति, कूटनीति और मीडिया से प्रमुख वक्ता पहले से ही यूरोपीय विकास पर मंच पर व्याख्यान दे चुके हैं।.