पिछला सम्मेलन
अंतरराष्ट्रीय व्यवसाय एवं विकास केंद्र ने ३-४ अप्रैल २०१२ को सम्मलेन केंद्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में "व्यवसाय, बढ़त एवं विकास:भारत में सुधार के दो दशक एवं इसके बाद" नामक अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस का आयोजन किया। इस कांफ्रेंस का मुख्य उद्देश्य इस बात का आंकलन करना था कि क्या व्यवसाय के उदारीकरण से भारत को धन के सामयिक वितरण एवं सामजिक विकास के साथ उच्च विकास दर प्राप्त करने में सफलता मिली है। इस कांफ्रेंस में सारे विश्व एवं भारत के उन विद्वानों ने अपने विचार रखे जो भारत के विकास एवं बढ़त के पथ की नीतियों को सुधारने के विभिन्न हिस्सों पर कार्य कर चुके हैं।
पूर्ण सत्र में शामिल हैं: प्रोफेसर कौशिक बसु (इंटरनेशनल स्टडीज के प्रोफेसर सी मार्क्स, कॉर्नेल विश्वविद्यालय, और मुख्य आर्थिक सलाहकार, भारत सरकार), प्रोफेसर अभिजीत विनायक बनर्जी (फोर्ड फाउंडेशन इंटरनेशनल की वृद्धि हुई पब्लिक स्कूल नामांकन के परिणाम के द्वारा आर्थिक विकास की नींव प्रोफेसर, मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) और वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण के प्रोफे र टी एन श्रीनिवासन (अर्थशास्त्र के सैमुअल सी पार्क जूनियर प्रोफेसर एमेरिटस, येल विश्वविद्यालय) द्वारा भारत के सुधारों के बाद से।
देश भर में विभिन्न संस्थानों से कई प्रख्यात विद्वानों उनके शोध को प्रस्तुत किया और दो दिनों के लिए भारतीय वृद्धि और विकास के अनुभव के मूल मुद्दों पर विचार -विमर्श किया। विश्लेषण के क्रम में नीति अंतराल के आगे भविष्य के लिए सबक की पहचान करने और प्राप्त करने के लिए , और यह भी भारतीय अनुभव से empirics में व्यापार, विकास और विकास से संबंधित सैद्धांतिक मुद्दों पर एक मुश्किल लग ले लिया ।
इस विस्तृत बैठक के अंतर्गत निम्नलिखित शामिल थे: आर्थिक विकास की नींव - प्रोफेसर कौशिक बसु (सी मार्क्स प्रोफेसर ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज, कॉर्नेल विश्वविद्यालय एवं मुख्य आर्थिक सलाहकार, भारत सरकार), सरकारी विद्यालयों में दाखिलों की संख्या में वृद्धि का परिणाम - प्रोफेसर अभिजित विनायक बनर्जी (फोर्ड फाउंडेशन इंटरनेशनल प्रोफेसर, मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी) एवं भारत के सुधारों के बाद से वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण - प्रोफेसर टी एन श्रीनिवासन (सैमुएल सी पार्क कनिष्ठ प्रोफेसर एमेरिटस ऑफ़ इकोनॉमिक्स, येल विश्वविद्यालय)
देश के विभिन्न संस्थाओं के जाने माने विद्वानों ने अपने शोध की प्रस्तुति दी एवं इन दो दिनों में भारतीय बढ़त तथा विकास के अनुभव के मूल मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किये । इस आंकलन से व्यापार, बढ़त तथा विकास से जुड़े मुद्दों के बारे में ज्ञात हुआ तथा नीति में कमी की पहचान तथा भविष्य के लिए सीख लेने के लिए भारतीय अनुभव से जुड़े प्रयोगों पर ध्यान केन्द्रित किया गया ।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं विकास केंद्र ने "बढ़त एवं विकास: भारत की भविष्य दिशाएं" पर अप्रैल २३-२४ २०१० को एसआईएस इमारत, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के समिति कक्ष में दो दिवसीय कांफ्रेंस आयोजित किया । आर्थिक सुधारों की १९९१ में शुरुआत के बाद बढ़त एवं विकास, चाहे वह सैद्धांतिक हों या अनुभवजन्य, पर ज़्यादा जोर दिया जा रहा है जो कि इस विषय के ज्ञान का स्त्रोत बनता है । ज्ञान के इस स्त्रोत के होने की वजह से कांफ्रेंस एक अनूठे सवाल का जवाब ढूँढने का प्रयास करती है - " क्या १९९१ से भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रदशन वैसा ही है जैसा कि इस ज्ञान पर आधारित होने के बाद होना चाहिए था? " इस कांफ्रेंस की संरचना आमंत्रित पत्रों के आठ चरणों में निम्नलिखित विषय वस्तुओं पर की गयी थी : मैक्रोइकॉनमी, उद्योग, सामजिक क्षेत्र, आर्थिक क्षेत्र, गरीबी, संवहनीय विकास, तकनीक एवं व्यापार । विभिन्न संस्थाओं के जाने माने विद्वानों ने इस कांफ्रेंस में वक्ताओं, आलोचनाकर्ताओं एवं अध्यक्षों के रूप में भाग लिया । इस कांफ्रेंस में शैक्षणिक समाज से काफी भारी मात्रा में लोगों ने प्रतिभागिता की, जिसमें जेएनयु के युवा शोध विद्यार्थी शामिल हैं । कांफ्रेंस के दौरान होने वाली अर्थपूर्ण आलोहना से भारतीय अर्थव्यवस्था के कार्यक्षेत्र के बारे में और भी ज़्यादा जानने का मौक़ा मिला एवं भविष्य की योजनाओं की भी झलक मिली ।