घटनाक्रम / सेमिनार
भेदभाव और बहिष्कार के अध्ययन के लिए केंद्र
स्कूल ऑफ सोशल साइंसेस
अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के लिए पत्रिका को आमंत्रित करें
हाशिए (आइज़), माइनर (इइ) संस्कृतियों और पहचान
दिनांक: 16 से 17 जनवरी, 2017
स्थान: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
अवधारणा नोट:
पार्श्विकरण का इतिहास सटीकता के अभाव एवं असमान प्रयोग की वजह से मिला जुला रहा है । सिम्मेल के "स्ट्रेंजर" एवं पार्क और स्टोनक्युस्ट के "मार्जिनल मैन" को खुले पार्श्विकरण के उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है, जहां इसे धार्मिक, जाति, लिंग, भाषा, नस्ल एवं राष्ट्रीयता के दलों द्वारा समझाया जाता है । खुले पार्श्विकरण के उलट जो लोग दलों के मध्य या साथ खड़े हैं, जिन्हें विशेष दलों से जुड़े या ना जुड़े होने की भावना महसूस होती है या जिनके अनुसार अल्पसंख्यकों का तमगा उनपर या उनकी भावनाओं पर सटीक नहीं बैठता पर जो समाज द्वारा तय की गयी परिभाषा के अनुसार अपनी भावनाओं को परिवर्तित कर रहे हैं, उन्हें डेविड रीसमैन द्वारा गुप्त पार्श्विकरण के वाहक कहा गया है । यह इस बात की ओर इंगित करता है कि पार्श्वीकरण के लिए स्थितियां सर्वव्यापी हैं परन्तु थोड़े से परिवर्तन के साथ हमेशा पायी जाती हैं ।यह सेमीनार रहस्य के अव्यवस्थित द्विभाजन के कारण जानने का प्रयास करेगा एवं उन सामाजिक स्थितियों, प्रेरणाओं एवं माध्यमों की बात करके पार्श्वीकरण के बारे में जानेगा, जो व्यक्तिपरक या निजी रूप से परोक्ष/जनता के पार्श्वीकरण में बदलाव लाने के लिए उपयुक्त हैं, पर उन गुप्त पार्श्वीकरण की स्थितियों को भी बनाए रखते हैं जिनका सामना एक व्यक्ति दैनिक जीवन में करता है।
नस्लीय पहचान किसी व्यक्ति के उत्पत्ति के मूल के आधार पर उनका वर्गीकरण है, हालांकि सांस्कृतिक एवं सांकेतिक सामग्री इस वर्गीकरण से जुड़ी हुई है ।संख्याओं के समूह एवं उत्पत्ति के आधार पर वर्गीकरण से नस्लीय बहुसंख्यकों एवं अल्पसंख्यकों का आधुनिक राष्ट्र - राज्य में द्विभाजन होता है। आंकड़ों के अलावा रूढ़िवादी सोच, अफवाहें, साम्प्रादायिक हिंसा की यादें तथा मिथक निर्माण के संभावित माध्यम होते हैं, और इस तरह द्विभाजन को कम करते हैं। पर इस बात का पता लगाना आवश्यक है कि अर्थों का निर्माण किस तरह होता है एवं वे किस तरह हमारे दैनिक जीवन में स्थापित होकर इसका अभिन्न हिस्सा बन जाते हैं । अदृश्यता, अत्याचार एवं भेदभाव की प्रकट एवं छिपी परीक्षाएं खुले एवं निजी पार्श्वीकरण के विचारों को बढ़ावा देती हैं, परन्तु जो बात अप्रत्यक्ष है वह यह कि कुछ विशेष ज्ञान निष्पक्ष कार्य प्रणाली के अभाव में किस प्रकार प्रत्यक्ष रूप से सामने आ जाता है ।
अतः इसे ध्यान में रखते हुए अल्पसंख्यक के अर्थ को समझने का प्रयास किया जाएगा जिसका पता अंततः प्रादेशिक हिंसा की अनचाही यादों, साम्प्रदायिक दंगों, धमकियों, भेदभाव एवं आर्थिक, राजनैतिकएवं सामजिक जीवन से अलगाव के साथ पार्श्वीकरण की भावना से चलता है । इससे एक प्रासंगिक प्रश्न सामने आता है कि भारतीय अल्पसंख्यकों में अनेकता की व्याख्या कैसे करें, क्या हिंसा अल्पसंख्यकों के निर्माण का आवश्यक सहगामी गुण है, और अगर नहीं तो अन्य गुण क्या हैं ? सामजिक स्थितियों में नस्लीय वर्ग किस तरह साने आते हैं, प्रतिभागियों के लिए अर्थपूर्ण होते हैं एवं एक दूसरे से जुड़ाव महसूस करते हैं ? अंत में, यह प्रस्तावित सेमिनार अल्पसंख्यकों, नस्लीय अल्पसंख्यकों एवं सूक्ष्म संस्कृतियों की समझ में तर्कमूलक व्यवहार को बढ़ावा देने का प्रयास करता है ।
सेमिनार की सह- विषयवस्तुएं :
• रूढ़िवादिता, पूर्वाग्रह एवं पहचान का निर्माण
• नस्लीय अल्पसंख्यकों की धार्मिक सामग्रियों पर समीक्षात्मक चिंतन
• अल्पसंख्यकों का इतिहास एवं वैचारिक संभाषण
• साम्प्रदायिक हिंसा की सामूहिक यादें
• वर्गों का निर्माण एवं अल्प्सान्ख्यिकता का विचार
प्रतिभागियों से अनुरोध है कि वे ऊपर बताये गए विषयवस्तु के नोट में आलोचित विषयवस्तु पर ही पत्र जमा करें । पत्र का सारांश (अधिकतम 300 शब्द) 30 दिसम्बर 2016 को या इससे पूर्व एवं विस्तृत पत्र 12 जनवरी 2017 को या इससे पूर्व दिए गए इमेल पते - csdejnuconference2017@gmail।com पहुँच जाने चाहिए। सारांश पर पत्र का शीर्षक, 4-5 मुख्य शब्द एवं लेखक की सम्बद्धता होनी चाहिए ।
संयोजक : डॉक्टर रोसिना नासिर (सीएसडीइ)